सोश्यल मीडिया : कितना सच कितना झूठ…

*सोश्यल मीडिया : कितना सच कितना झूठ…*
*एक बनावटी, झूठी और ढोंगी दुनिया को समझो…*
बात कड़वी है यह सच है लेक्सी हेरिक की, जो कि वे एक मनोवैज्ञानिक है और समाजशास्त्री हैं । उन्होंने ‘हाफिंग्सन पोस्ट’ में आज के सोश्यल मीडिया के बारे में कहा है कि – किस-किस स्तर पर हमारी जीवनशैली को हम सोश्यल मीडिया में कृत्रिम, बनावटी, झूठी और मनोरोगी बना दे इतनी हद तक चित्रित कर रहे हैं ।
एक जमाना था जब उत्कृष्ट छविकार (फोटोग्राफर्स) अपने कैमरा में फ्लैश तक का उपयोग नहीं करते थे, इसका कारण था कि ओरिजनलिटी बरकरार रहे परन्तु आज तो फ्लैश होता है । महानुभावों की छवि भी फोटोशोप में एडिट करके छापी जाती है । ब्यूटीफिकेशन का टच देने वाले सॉफ्टवेयर आ गए है जिसके जरिये इंसान कितना ही बदसूरत हो उसे खूबसूरत दिखाते हैं ।
ये सब देखकर लगता है कि कितना ढोंग बढ़ रहा है समाज में, लोगों में ! भीतर से परेशान व दुःखी रहनेवाले लोग अपनी फोटो, वीडियो सोश्यल मीडिया में पोस्ट करते हैं तो कितने हैप्पी, प्रसन्न लगते है । हकीकत में ये हैप्पीनेस बनावटी होता है, झूठा होता है ! पति-पत्नी में कितने ही झगड़े-मनमुटाव क्यों न हो लेकिन उनके फोटो देखोगे तो लगेगा कि दोनों में कितना प्रेम है !
सोश्यल मीडिया में ये डिवाइन और ग्रेसफुल लगनेवाले लोगों से रूबरू जब आप मिलते हो तब क्या आपको लगता है कि वे इतने डिवाइन, ग्रेसफुल और ब्यूटीफुल हैं ? मेकअप, ब्यूटीट्रीटमेंट करानेवाले लोग केवल सुंदर दिखते भर हैं, हकीकत में हो ये जरूरी नहीं है । अक्सर वे सुंदर दिखने का ढोंग मात्र करते हैं और हमें प्रभावित करने के हर संभव प्रयास करते है । उनके सुंदर चित्रों को देखकर प्रभावित हो जाने वाले लोग उनके मेकअप बिना के चेहरे को देखें तो शायद दोबारा कभी उनको देखना पसंद ही न करें ! वास्तव में बाहरी सौन्दर्य का इतना अधिक ख्याल रखनेवालों को अपने भीतरी सौन्दर्य के बारे में भी जागरूक होना चाहिये ।
– नारायण साँईं “ओहम्मो “

पूज्य श्री नारायण साँई जी का सूरत से संदेश…

किसी ने ठीक ही कहा है कि –
  ” बंद पिंजरों में परिंदों को देखा है कभी ?
     ऐसे सिसकते हैं मोहब्बत के मुजरिम अक्सर । “
बहुत सच लगती है ये बात । गहराई से सोचने पर । हमने अब समय के साथ ये सीखा है और सीख रहे हैं कि दूसरों के अस्तित्व को सम्मान कैसे दिया जाए ! जो हमारे प्रति तनिक भी सद्भाव – सम्मान नहीं रखते, ऐसों के प्रति भी हमारा आचरण – बर्ताव सद्भावनायुक्त कैसे बनाये रख सकते हैं इस बात को मैं आजमा रहा हूँ, प्रयोग कर रहा हूँ । मैंने प्रयोग करना महात्मा गाँधी से सीखा है । मैं अपने जीवन को प्रयोग करने की शाला मानने लगा हूँ । मैं इन दिनों एक नया प्रयोग कर रहा हूँ – बचपन की तरह फिर से जीकर देख रहा हूँ और मुझे इस प्रकार दिन बिताने में बहुत अच्छा लगता है । मैं चाहता हूँ कि यह प्रयोग तुम्हें भी करके देखना चाहिये । अरे, पूरा दिन नहीं तो दिन में सिर्फ एक बार बचपन की तरह खुलकर मस्ती करके देखो । कौन क्या बोल रहा है या सोच रहा है इसकी तनिक भी परवाह किये बिना बाल मानस, बाल अठखेलियों, बाल स्वभाव को स्वयं में प्रकट करके देखिये । फिर से बचपन में आ जाइये । अनजाने में जिस बचपन का आनंद ले ही नहीं पाये थे, अब जानकर उस बचपन को पुनः जाग्रत कीजिये । बचपन को निखरने दीजिये । खुलकर बचपन को आप किसी भी उम्र में जाग्रत कर सकते हैं । बचपन की मस्त निर्दोष मुस्कुराहट को, अपने होंठो पर अठखेलियाँ करने दीजिए…
यह प्रयोग ज्यों-ज्यों मैंने किया मुझे फायदा हुआ । मेरा तनाव, मेरी चिंता, मेरा शोक, मेरी उदासी, मेरी गमगीनी, मेरी फिक्र, मेरा अवसाद, मेरा अकेलापन, मेरी पीड़ा – कहाँ गुम हो गई, खो गई, मुझे पता ही नहीं चला । क्या कहूँ ये प्रयोग इतना सरल है और कितना सुखदाई है कि ज्यों-ज्यों ये प्रयोग करता जा रहा हूँ मेरा उत्साह, मेरी खुशी बढ़ती ही जा रही है । ये प्रयोग करना केवल मेरे लिए ही खुशी का कारण नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी आंनद-प्रमोद-विनोद का कारण बन रहा है ।
सभी लोग जो मुझे जानते हैं या नहीं जानते – मेरे बालवत् स्वभाव से मुझसे मिलने-घुलने लगते है और निःसंकोच मस्ती कर सकते हैं । मेरे इस प्रयोग ने सभी के साथ मुझे आत्मीय भाव से जोड़ दिया है और इसका आंनद ही कुछ निराला है । आप भी इस प्रयोग को करें और अपने जीवन में आनंद की वृद्धि करें ।
इन दिनों लाजपोर सूरत जेल में मेरी ही बेरेक में श्याम सुन्दर पांडे नामक ब्राह्मण साथ में रहते है । मेरे साथ, जेल में वे भी चलते हैं । और उन्होंने जब मेरा यह प्रयोग देखा तो कहा कि इस प्रयोग से आपकी प्रसन्नता तो बढ़ती ही हैं साथ ही साथ जिनसे आप मिलते हैं उनकी प्रसन्नता भी बढ़ती है । मेरी बेरेक में 5-10 अन्य लोग भी है और उनके चेहरे पर जेलवास का दुःख, पीड़ा नहीं है जबकि अन्य यार्डो, बेरेकों में रहनेवाले कैदियों के चेहरे पर उनकी पीड़ा, दुःख की रेखाएँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं । यह बालवत् आचरण, बालवत् स्वभाव को अगर हम उम्र की परवाह किये बिना जाग्रत रख पाएं तो मस्ती-खुशी हर हाल में हमें मिल सकती है ये बात पक्की है ।
– नारायण साँई ‘ओहम्मो’
   12/7/17

Pujya Shri Narayan Saiji ka Surat Lajpore Jail se 12 July 2017 ka sandesh

अनहद अलौकिक प्रेम से हम रूपांतरित होते हैं । आत्मरूपांतर एक साधना है जीवनभर करने के लिए । ये अधिकार बिना सोचे समझे किसी N.G.O/Trust/गुरू/संस्था या किसी आध्यात्मिक अधिकारी के हाथों नहीं सौंप सकते ।
तन-मन की बेहतर सेहत के लिए हमें अपने आपके प्रति स्वयं ही सचेत व जाग्रत रहना चाहिये ।
स्वयं के दृष्टिकोण को, अपनी बुद्धि को हमें संकीर्णता की सारी परिधियों से बाहर निकालकर इतनी विशाल और व्यापक कर लेनी चाहिये कि जहाँ हर देश, हर किस्म, हर धर्म, हर संप्रदाय, हर मत व हर विचारधारा के लोगों से कनेक्ट हो सकें ।
मैं चाहता हूँ कि हम सभी एक महान जीवनमुक्ति – जीते जी मुक्ति के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ें, तत्वज्ञान – आंतरिक विज्ञान, योग विज्ञान, ओजस्वी अध्यात्म विज्ञान की शक्ति और मुक्ति को जानें, वेदांतिक जीवनशैली को समझें और आत्मसात् करें जिससे हम स्वयं अपने भाग्य के रचयिता बन सकें ।
जो भी माध्यम हमें एकत्व की ओर ले जाए, उस माध्यम को खोजें, वही योग है । ऐसा प्रेम योग हम सबको अलौकिक अनहद आनंद से रूपांतरित कर देगा ।
– नारायण साँई ‘ओहम्मो’