विश्व के नाम “श्री नारायण साँई जी” का खुला पत्र 9/4/2017

By omadmin   |  

April 15, 2017   |  

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vishva ke naam khula patar

मैं, बहुत दिनों के बाद सूरत की जेल से आपको पत्र लिख रहा हूँ ! अभी-अभी चैत्र नवरात्र बीत चुके । रामनवमी भी बीत चुकी । पर राम का रस तो नित्य हृदय को रसमय बनाये हुए है ।
राम श्वास है । राम प्राण है । राम जीवन है । राम ही तो विश्राम है । राम बिन आराम कहाँ ? विराम कहाँ ? राम के नाम को, राम के सुमिरन को हम जीवन के ताने बाने में इतना बुन ले कि राम से श्रेष्ठ, राम से महत्वपूर्ण, राम से सुखदायी हमें अन्य कुछ भी समझ में ही न आए, तो इससे अच्छा सौभाग्य हमारे लिए और क्या होगा ?
न मैं रहूँ, न आप रहो, बस राम ही राम रह जाए….! वास्तविकता तो यही है, चाहे हमारी समझ में आए चाहे न आए – पर यही हकीकत है कि सब राम ही राम है । राम के सिवा कुछ था नहीं, है नहीं और हो सकता नहीं । राम में ही पूर्णता है ।
आइये, हम अपनी दृष्टि को राम में टिकाएं ! सर्वत्र व्याप्त राम के दर्शन करें । राम की अनुभूति करें । राम का सुखद अहसास करें । हर काम के आरंभ, मध्य और अंत मे राम की ही शक्ति है । राम की अभिलाषा करे । राम से अभिन्नता का बोध प्राप्त करें । जीवन के रहते यह बोध हो जाना चाहिये । जितना जल्दी हो उतना ही अच्छा है । यही बोध जीवन को सफल और सार्थक बनाता है इस बात में मेरा अडिग विश्वास था, हैं, रहेगा ।
अनन्त जीवन के आधार राम को, राम के प्यारों को, राम के आश्रितों को मेरा हृदयपूर्वक प्रणाम !
अप्रैल महीना प्रारम्भ हो चुका है । अभी से गर्मी की तीव्रता महसूस होने लगी है । 2017 की गर्मी अबतक के  पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ेगी ऐसा जानकारों का कहना है । मनुष्य ने पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । जितना आधुनिक बनता गया, जितना विकसित होता गया उतना ही इंसान अपने लिए, दुनिया के लिए खतरनाक बनता गया । कभी सोचता हूँ मनुष्य का विकास ही कहीं मनुष्य का विनाश न कर दे ! वास्तविक विकास की परिभाषा समझे बिना केवल भौतिक-आधुनिक विकास को ही वास्तविक विकास मानने की गलती कई बड़े-बड़े दिग्गज, अपने को बुद्धिमान समझने वाले वैज्ञानिक, राजनेता करते आये है, आज भी कर रहे हैं लेकिन वास्तविक विकास के मायने वे समझ नहीं पाते । वास्तविक विकास के अर्थ उनकी समझ से परे है । काश ! विकास के सही अर्थ उनकी समझ में आ पाते !
मैं आज मृणाल भंडारी के बारे में आपको बताना चाहता हूँ । देखिए, इनके हृदय में सेवा और परहित के भाव का कैसा विलक्षण विकास हुआ है । विकास का एक उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत है ।
मृणाल भंडारी, सूरत में रहते हैं और वर्ष 2009 से वस्त्र बैंक चलाते हैं । मानव सेवा ही प्रभु सेवा है । सबके अंदर राम है… ‘सियाराममय सब जग जानि…’ का दृष्टिकोण, सबकी सेवा का भाव कितना गजब का विकसित हुआ है इनमें, ये देखिये…!
मृणाल भंडारी एक अनोखा सेवा कार्य करते हैं… गुजरात के अंदरूनी गाँवों में वस्त्र बाँटते हैं । वस्त्रों का दान करते हैं । हर वर्ष अप्रैल महीने में सूरत शहर से वस्त्रों को स्वीकार किया जाता है और मई महीने में वितरित किया जाता है ।
भंडारी परिवार के छः सदस्यों द्वारा यह कार्य होता है । श्रीमती रतनबेन दयाभाई भंडारी चेरिटेबल ट्रस्ट के तहत यह सेवा की जाती है । इस ट्रस्ट में परिवार के छः सदस्य हैं – माता-पिता और चार भाई । इसके अलावा कुछ मित्र-बंधु और जुड़ जाते हैं । शुरुआत में 500 जोड़ी कपड़े आते थे फिर बढ़ते-बढ़ते छोटा हाथी टेम्पो भरके कपड़े दान में आने लगे । अभी एक ट्रक भरके कपड़े दान में आते हैं इन वस्त्रों को गुजरात के डांग, भादरपाड़ा, दाहोद, गोधरा आदि शहरों के अंदरूनी गरीब – अभावग्रस्त – जरूरतमंद लोगों में बाँटते हैं । दान में आये हुए वस्त्र नए और पुराने (पहन सकें, उपयोग कर सकें ऐसे) दोनों प्रकार के होते हैं । जिस गाँव या एरिया में बाँटना हो – उन गाँवों की पहले विजिट, मुलाकात की जाती है और परिस्थिति देखी जाती है ।
इस ट्रस्ट को अब ऐसे दाता (Donors) भी मिल रहे हैं जो रेडीमेड कपड़े दे जाते हैं । इस ट्रस्ट के कार्यालय, रांदेर रोड़, नवयुग कॉलेज के पास, 10 A, शांति पेलेस सोसायटी, सूरत में है ।
अगर मन में सेवा, परहित, लोककल्याण की भावना है तो आपके जीवन में सुख,शांति, प्रेम, आनंद का विकास होगा । आपके द्वारा समाज का, शोषितों, वंचितों, पीड़ितों का विकास होगा ही, इसमें दो राय नहीं हैं ।
हमारे आस-पास भी ऐसे कुछ लोग हमें मिल सकते हैं जो सिर्फ अपने लिए ही नहीं, दूसरों के लिए भी सोचते हों, ऐसे लोगों से ही समाज का वास्तविक विकास होता है ऐसा मैं मानता हूँ ।
मेरी जानकारी में एक बात और आई है जो मैं आपसे साझा करता हूँ । विश्व की सबसे पुरानी प्राचीन संस्कृति है तो वो है सनातन भारतीय संस्कृति । भारत के वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों में जो ज्ञान है वह अद्भुत है, अद्वितीय है । ज्योतिष, मंत्र, यज्ञ याग आदि करने वाले ब्राह्मण आजकल दुर्लभ होते जा रहे हैं । सूरत के दो विद्यार्थियों ने इस समस्या को न सिर्फ समझा बल्कि इस समस्या को मिटाने का प्रयास भी किया और एक एप्लीकेशन (app) बनाई जिसका नाम है “फाइंड पंडितजी” (Find Panditji app.)
भारत की भव्य एवं दिव्य सनातन संस्कृति के बारे में लोगों को अधिक ज्ञान मिले, दैनिक जीवन में वे इससे अधिक जुड़ सकें और अपने घर-परिवार में, समाज में – वास्तु पूजा, गृह प्रवेश, यज्ञ कर्म, पाठ-पूजा आदि के लिए आसानी से ढूँढ़ सकें ऐसी कोई व्यवस्था होनी चाहिए । पिछले कुछ वर्षों से इस विषय में मैं सोच रहा था । और मेरी इस सोच को सफल बनाया है कुणाल शाह और जयेश प्रजापति ने !
सूरत के इन छात्रों ने गजब का काम किया है FindPanditji app. नाम की एक एंड्रॉयड एप बनाकर । जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने घर बैठे घर के आसपास, नजदीक, अपने एरिया के पंडित जी को आसानी से ढूँढ़ सकता है । साथ ही हिन्दु धर्म के सभी देवी-देवता की पूजा कैसे हो सकती है और उसका महत्व क्या है उसकी जानकारी भी प्राप्त कर सकता है । इन ओजस्वी छात्रों को मेरी खूब-खूब बधाई ! क्योंकि आजकल हम ऐसा देखते हैं कि कई पढ़े-लिखे लोगों को भी कि जो भारत में जन्में हैं, उनको भारतीय संस्कृति के बारे में ज्ञान नहीं है । वे नहीं जानते सनातन धर्म की परिभाषा क्या है, कैसी है, पूजा-पाठ आदि के महत्व को नहीं समझते और ऐसी छोटी-छोटी बातों को वो दूसरों से पूछते हैं । और जिनसे पूछते हैं उनको भी कई बार सम्पूर्ण जानकारी नहीं होती । ऐसी स्थिति में यजमान को पंडित जी खोजना आसान होगा – इस एप के जरिये ! प्रसाद से लेकर होम हवन, यज्ञ व अन्य कर्म कांडों के कार्यों के लिए कर्मकांडी विद्वान ब्राह्मणों को खोजना आसान हो जायेगा !
एक और ओजस्वी प्रतिभावान व्यक्ति के बारे में, मैं आपको बताना चाहता हूँ कि जिसने पचास हजार की नौकरी छोड़कर गौमाता की सेवा शुरू की है । ये पोरबंदर (गुजरात) की बात है ।  एक मेकेनिकल इंजीनियर है रोहितसिंह जाडेजा कि जो मूल निवासी कच्छ के हैं और पिछले 42 वर्षों से इनका परिवार पोरबंदर जो महात्मा गाँधी की जन्मभूमि है – वहाँ रहता है ।
रोहितसिंह के पिता गंभीरसिंह जाडेजा पोरबंदर की सौराष्ट्र केमिकल फैक्ट्री में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी करते थे और उनका बेटा रोहित पोरबंदर की पॉलीटेकनीक कॉलेज में डिप्लोमा मिकेनिकल इंजीनियरिंग का कोर्स करके सौराष्ट्र केमिकल फैक्टरी में थर्मल पावर प्लान्ट में नौकरी के साथ-साथ गौ-सेवा भी करता था । बीमार और चोट लगी गायों की सेवा करते-करते जो सहानुभूति रोहितसिंह को मिली, उसका शब्दों में वर्णन नहीं कर सकते । केवल 35 साल की उम्र का ये नवयुवक अपनी 50,000 रुपये की नौकरी को छोड़कर गौ-सेवा में लग जाए ये सचमुच आश्चर्यजनक घटना है । आज उनकी उम्र 42 साल की है और नौकरी छोड़ी तब जो जमा पूंजी चार लाख थी जो बचत के रूप में इकठ्ठी की थी वह राशि भी उनके द्वारा गायों की सेवा के लिए खर्च कर दी । अभी वे पोरबंदर में महाराणा मील की चाली में स्थित पोराइ गौशाला में 275 जितनी गायों की सेवा कर रहे हैं । यहाँ उनके इस गौ-सेवा के कार्य में राजुभाई शर्मा एवं अन्य गौ भक्तों का सहयोग मिल रहा है । चोट लगी गायों के परिवहन के लिये उनके पास कोई वाहन की व्यवस्था नहीं है तो रिक्शा या अन्य वाहन में गायों को लाया जाता है और उनकी चिकित्सा पींडा-पींडी सहित का कार्य भी वे कर रहे हैं ।
गौ सेवा के धर्म को धन से अधिक महत्व देनेवाले ऐसे दुर्लभ लोग आज भी ऐसे कलियुग में ढूँढ़ने पर मिल सकते हैं । जिसे सेवा करनी है वह सेवा ढूँढ ही लेता है । और वास्तविक समाज का विकास तो ऐसे मूक सेवक ही करते है । क्या कभी सरकारें ऐसे लोगों को ढूँढ़कर इनको सहयोग कर पायेगी ? यह मुझे बार-बार कुरेद रहा है ।
समाज का, देश का वास्तविक विकास करनेवाले ऐसे मूक सेवकों को काश ! भारत की, राज्य की सरकारें ढूँढ़ें, खोजें – उनके सामाजिक सेवा कार्य को समझे, उनकी कद्र करे और हर प्रकार से उनकी मदद करे तभी उनको दिया हुआ हमारा वोट सफल है वरना नहीं ।
ये चैत्रमास है आयुर्वेद में कहा है “अरिष्ट न रिष्टशुभमस्मात सर्वतो भद्र सर्वतो भद्रम” अर्थात् नीम का सेवन करने से किसी प्रकार का अशुभ नहीं होता चारों तरफ से कल्याण ही होता है । आयुर्वेद में नीम के बहुत बखान किये गये है, बड़ी महिमा है और इसीलिए नीम के वृक्ष को धरती का कल्पवृक्ष कहा है । नीम का एक लिमिट में सेवन करना फायदेमंद होता है । चैत्र मास (अप्रैल-मई) में तो अधिक सेवन करना चाहिये । इससे रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है । ये कड़वा होने से कफ और पित्त का शमन करता है । गुण से ये लघु और शीत वीर्य है । चैत्र और बैशाख मास ये वसंत ऋतु है । इस समय में संचित कफ दोष पिघलकर जठराग्नि का नाश करता है और अनेक प्रकार के कफज विकार उत्पन्न करता है । इसीलिए (अप्रैल-मई) चैत्र मास को विशेषरूप से नीम के कोमल-कोमल पत्ते – फूल सुबह-सुबह अवश्य खाएं या नीम का दातुन करें । नीम के दातुन के समय जो मुँह में कड़वा रस हो उसे थूकने के बजाय निगल जाएं । यह बहुत ही गुणकारी फायदेमंद प्रयोग है ।
गर्मियों में जो लोग गर्मी से बचने के लिए कोल्डड्रिंक्स आदि का सेवन करते हैं वे जाने-अनजाने अपने शरीर को खराब करते हैं क्योंकि कोल्डड्रिंक में जो रसायन होते है वे नुकसान करते है । शीतलपेय, कोल्डड्रिंक के बदले नींबू पानी, नारियल पानी और फलों के रस का सेवन करें । जिन्हें यह उपलब्ध न हो वे गुड़-जीरे का शरबत बना सकते हैं ।
फ्रिज के पानी से मटके का पानी अच्छा होता है और गुणकारी होता है । एक औषधि है तकमरिया । इसके बीज बहुत ही ठंडक, शीतलता प्रदान करते हैं । रात को तकमरिया के एक-दो चम्मच बीज अलग बर्तन में और 25 दाने किशमिश अलग बर्तन में भिगो दें । सुबह किशमिश को मसल दें और तकमरिया आवश्यकता अनुसार डालें । यह बहुत ही फायदेमंद प्रयोग है । दिनभर शरीर में ठंडक बनी रहती है । किसान तो अपने खेत में थोड़ी-सी तकमरिया की खेती कर लें, उगा लें । घर के आँगन में भी इसके बीज डाल सकते है । यह बहुत ही लाभप्रद प्रयोग है गर्मी की दाहकता से बचने के लिए ! और ये सस्ता भी है । सभी लोग कर सकते हैं । फालुदे, शिकंजी आदि में भी छोटे-छोटे बीज इसके डाले जाते हैं ।
दि. 17 अप्रैल, 2017 अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस है एवं मेरे पिताश्री का जन्मदिवस भी है । देश-विदेश में मेरे पिताश्री के जन्मदिवस को सेवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है । 17 अप्रैल को नृत्य दिवस, सेवा दिवस का संयोजन हो रहा है । भगवान शिव की नटराज प्रतिमा नृत्य का समर्थन करती है एवं नृत्य के महत्व को स्थापित करती हैं । ‘नाचो अंतर्मन से’ सायंकालीन एक सत्र – एक शाम राम के नाम या festival of Dance का कार्यक्रम शाम के समय आयोजित करके सेवा, संगीत व नृत्य का संयोजन करके एक अद्भुत आनंद के कार्यक्रम का आयोजन हो सकता है । सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करके हम युवाओं को संगीत, नृत्य व सेवा के साथ जोड़कर उनके जीवन को रसमय बना सकते हैं ।
और अंत में – इस पत्र को विराम देते हुए एक शायरी पेश है…
जीवन के सागर से होकर, उस पार तक जाना है ।
पाना, खोना, हँसना, रोना, सब यही रह जाता है । ।
आपका अपना
‘नारायण’

One thought on “विश्व के नाम “श्री नारायण साँई जी” का खुला पत्र 9/4/2017

  • Om Prakash Kumawat   |   April 22, 2017

    Nice Status updated by Shri Narayan Sai
    Bapuji Nirdosh h

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