अनहद अलौकिक प्रेम से हम रूपांतरित होते हैं । आत्मरूपांतर एक साधना है जीवनभर करने के लिए । ये अधिकार बिना सोचे समझे किसी N.G.O/Trust/गुरू/संस्था या किसी आध्यात्मिक अधिकारी के हाथों नहीं सौंप सकते ।
तन-मन की बेहतर सेहत के लिए हमें अपने आपके प्रति स्वयं ही सचेत व जाग्रत रहना चाहिये ।
स्वयं के दृष्टिकोण को, अपनी बुद्धि को हमें संकीर्णता की सारी परिधियों से बाहर निकालकर इतनी विशाल और व्यापक कर लेनी चाहिये कि जहाँ हर देश, हर किस्म, हर धर्म, हर संप्रदाय, हर मत व हर विचारधारा के लोगों से कनेक्ट हो सकें ।
मैं चाहता हूँ कि हम सभी एक महान जीवनमुक्ति – जीते जी मुक्ति के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ें, तत्वज्ञान – आंतरिक विज्ञान, योग विज्ञान, ओजस्वी अध्यात्म विज्ञान की शक्ति और मुक्ति को जानें, वेदांतिक जीवनशैली को समझें और आत्मसात् करें जिससे हम स्वयं अपने भाग्य के रचयिता बन सकें ।
जो भी माध्यम हमें एकत्व की ओर ले जाए, उस माध्यम को खोजें, वही योग है । ऐसा प्रेम योग हम सबको अलौकिक अनहद आनंद से रूपांतरित कर देगा ।
– नारायण साँई ‘ओहम्मो’